दोस्तों! आज की hindi kavita मत करो खिलवाड़ प्रकृति से (hindi poem on nature) पर है! आप सब देख ही रहे है किस तरह से लोग नए-नए आविष्कार करके इस प्रकृति की सुंदरता को नष्ट कर रहे है! आज हम poem on nature in hindi की सहायता से आप सब को समझाने का एक छोटा से प्रयास कर रहे है!
मानव जीवन में प्रकृति की महत्ता का जितना वर्णन किया जाए, वह हमेशा अपर्याप्त रहेगा। प्रकृति, हमारी मां के समान, हमें निस्वार्थ प्रेम और देखभाल देती है। यह वह है जो हमें हवा, पानी और भोजन प्रदान करती है, जो हमारे जीवन के लिए अनिवार्य हैं। यह बेहद जरूरी है कि हम छोटे बच्चों को इस महत्वपूर्ण संबंध को समझाएं, ताकि वे प्रकृति का सम्मान करना और उसकी देखभाल करना सीख सकें।
इन कविताओं के माध्यम से, बच्चे न केवल प्रकृति की महत्ता को समझेंगे, बल्कि यह भी जान पाएंगे कि उन्हें प्रकृति के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए। यही संदेश उन्हें पर्यावरण के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाएगा।
मत करो खिलवाड़ प्रकृति से (Hindi poem on nature)
रुक जाओ अभी भी समय है
अगर आज नहीं रुके तो
कल बर्बाद कर देंगे हम,
जाने अंजाने प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे है हम
प्रकृति के खिलाफ जा रहे है हम
उसुलो को तोड़ नए उसुल बनाने में जुट गए है हम,
क्या प्रकृति हमें माफ़ करेगी
कानून तोड़ कर कब तक हम बचेंगे,
कब तक प्रकृति ऐसे ही जुर्म सहेगी
कब तक हम ऐसे ही लापरवाह रहेंगे
जब कुदरत अपना रौद्र रूप दिखाएगी
सारे आविष्कार धरे के धरे रह जाएंगे,
और उस दिन नई रोशनी के साथ
प्रकृति अपने को फिर नया बनाएंगी
और फिर देर अंधेरे के बाद नया कल निकलेगा!
प्रकृति का विलाप (Short hindi poem on nature)
हरे-भरे जंगलों की छांव,
अब सूने मैदान में बदल गई।
कल-कल करती नदियों की रागिनी,
अब मौन अश्रु बन गई।
फूलों की बगिया जो कभी महकती थी,
अब बिखरी हुई पंखुड़ियों की कहानी है।
चिड़ियों की चहचहाहट गूंजी जो कभी,
अब खामोशियों की रवानी है।
पेड़ों की शाखें झूमती थी कभी,
अब कटे हुए तनों की व्यथा है।
सूरज की किरणें जो मुस्कुराती थीं,
अब धुंधली छायाओं की कथा है।
बादलों का नर्तन, वर्षा का संगीत,
सब जैसे कहीं खो गया।
प्रकृति का यह हंसता-गाता संसार,
मानव की लालच में सो गया।
धरती की यह ममता, यह प्यार,
अब शून्यता में बदल गई।
प्रकृति का यह विलाप सुनो,
यह केवल एक चेतावनी है।
संभल जाओ ऐ इंसान,
अब भी वक्त है सुधार लो।
प्रकृति का संरक्षण करो,
वरना यह धरोहर हमसे रूठ जाएगी।
प्रकृति की पुकार (Poem on nature in hindi)
हरी भरी थी एक समय, ये धरती प्यारी हमारी,
फूलों की खुशबू बिखेरती, नदियाँ बहती थीं निरंतर सारी।
बादलों के गीत गूंजते, हवा के झोंके सुकून देते थे,
पेड़ों की छाँव में, हम बचपन बिताते थे।
अब न वो हरियाली है, न वो खुशबू की बहार,
काट दिए पेड़ हमने, किया नदियों का भी संहार।
पक्षियों की चहचहाहट, अब सुनाई नहीं देती,
धरती माँ की व्यथा, अब कोई समझता नहीं।
पानी के बिना सूख गए, वो खेत खलिहान,
सूनी आँखों से ताकते हैं, किसान की मुरझाई जान।
आकाश भी रोता है, बरसते हैं उसके आँसू,
हमने प्रकृति का दोहन किया, उसके दिल में उगाई घासू।
हे मानव, क्यों तूने किया ये अत्याचार,
प्रकृति की पुकार सुन, उसे फिर से हरा-भरा कर।
वक्त अभी भी है, सँभल जा, सँवार ले ये बिखरी काया,
प्रकृति को फिर से प्यार दे, उसे न दे और दुष्कर माया।
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By: Shubhi Gupta (शुभी गुप्ता)
Story and Poem Writer