दोस्तों! आज के समय में अख़बारों ( Newspaper ) में जो ख़बरें आती हैं और कुछ खबरें तो ऐसे होती जिसे पढकर हम बहुत दुखी हो जाते है, ( poem on newspaper ) आज हम उसी पर ही आपके लिए हिंदी कविता ( hindi poem ) “हाँ जी मैं हूँ अखबार” लेकर आए है !
हाँ जी मैं हूँ अखबार
रोज आपके घर
लाऊ खबरों का भंडार,
कहीं हो रेप कहीं हो चोरी
सारी खबरें सुर्खियां बना कर,
आप तक लाऊ कभी मैं आपकीआवाज बन
लोगो तक आपका संदेश पहुंचाऊं
आपको सीधा जनता से जोड़ जाऊ,
जो अफसर गहरी नीद में सो
गुनाह को देख ना पाए
उन्हें नीद से मैं जगाऊ,
सरकार के काले चिट्ठे भी खोल
जनता तक पहुंचा जनता को आइना दिखाऊं,
बच्चो के लिए मैं नई-नई कहानियां लाऊ
यहां तक कि पहेली से उनको नई सीख मैं सिखाऊँ,
मैं हूं लोकतन्त्र का चौथा सतंभ
जनता की ताक़त हूं
बुराई पर हावी हूँ
हाँ जी मैं हूँ अखबार!
दोस्तों ! कविता अगर दिल को छूह जाये, तो शेयर ज़रूर कीजियेगा।
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by Shubhi Gupta ( शुभी गुप्ता )
Story and Poem Writer
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