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Ahoi Ashtami Vrat Katha In Hindi | अहोई अष्टमी व्रत की पौराणिक कथा

Ahoi Ashtami Vrat Katha

Ahoi Ashtami Vrat Katha: अहोई अष्टमी व्रत के दौरान माताएं अपने बच्चों की सलामती के लिए व्रत रखती हैं और अहोई माता की पूजा करती हैं। अगर आप भी यह व्रत रख रहे हैं तो व्रत कथा (ahoi mata ki kahani) का पाठ और पूजा अवश्य करें।

भारत अपनी विशिष्ट संस्कृति और परंपराओं के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है जो इसे अलग करती है। यह जीवंत राष्ट्र त्योहारों से भरा हुआ है, जिनमें से प्रत्येक हमारे पोषित मूल्यों और सदियों पुराने वैदिक रीति-रिवाजों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए एक माध्यम के रूप में काम कर रहा है। इन हर्षोल्लास वाले उत्सवों में एक पूजनीय अहोई अष्टमी भी है, जिसके दौरान समर्पित माताएँ अपनी प्यारी संतानों की दीर्घायु और खुशी के लिए प्रार्थना करते हुए व्रत रखती हैं।

इस लेख में अहोई अष्टमी व्रत की पौराणिक कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha), व्रत परंपरा के अनुष्ठान और महत्व के साथ-साथ अहोई अष्टमी व्रत से जुड़े नियमों और लाभों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

अष्टमी तिथि प्रारंभ: 4 नवंबर 2023, शनिवार, रात 12:59 बजे
अष्टमी तिथि समाप्ति: 5 नवंबर 2023, रविवार, रात 3:18 बजे

पूजा का समय: शाम 5 बजकर 33 मिनट से शाम 6 बजकर 52 मिनट तक
तारों के दर्शन का समय: शाम 5 बजकर 58 मिनट

प्राचीन काल में एक साहूकार था जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दिवाली के समय ससुराल से अपने माता-पिता के घर आई थी। दिवाली पर घर लीपने के लिए जब सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं तो उनकी ननद भी उनके साथ चली गई।

साहूकार की बेटी जिस स्थान पर मिट्टी खोद रही थी उस स्थान पर स्याहू (साही) अपने बेटों के साथ रहती थी। मिट्टी खोदते समय गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी लगने से स्याहू का एक बच्चा मर गया। इससे क्रोधित होकर स्याहू ने कहा- मैं तेरी कोख बांध दूंगी।

स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक करके विनती करती है कि वे उसके स्थान पर अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी अपनी ननद के स्थान पर अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी की जो भी संतान होती है, वह सात दिन के बाद मर जाती है। इस प्रकार सात पुत्रों की मृत्यु के बाद उसने पंडित को बुलाया और इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न हो जाती है और उसे स्याहू के पास ले जाती है। रास्ते में जब वे थक जाते हैं तो दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक तरफ जाती है तो वह देखती है कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को काटने वाला है और वह सांप को मार देती है। इसी बीच गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और बिखरा हुआ खून देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार डाला है, इस पर वह छोटी बहू पर चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू कहती है कि उसने उसके बच्चे की जान बचाई है। इस पर गरुड़ पंखनी प्रसन्न होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास ले जाती है।

वहां स्याहू छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात बेटे और सात बहुएं होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर बेटे-बहुओं से भर जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक महिला अपने 7 बेटों के साथ एक गांव में रहती थी। कार्तिक माह में एक दिन वह स्त्री जंगल में मिट्टी खोदने गयी। वहाँ उसने गलती से एक जानवर के बच्चे को अपनी कुल्हाड़ी से मार डाला।

उस घटना के बाद उस स्त्री के सातों पुत्र एक-एक करके मर गये। इस घटना से दुखी होकर महिला ने गांव की हर महिला को अपनी कहानी बताई। एक बुजुर्ग महिला ने उस महिला को माता अहोई अष्टमी की पूजा करने का सुझाव दिया। सोते समय शावक को मारने का पश्चाताप करने के लिए महिला ने शावक का चित्र बनाकर माता अहोई अष्टमी के चित्र के साथ रख दिया और उसकी पूजा करने लगी। महिला ने 7 वर्षों तक अहोई अष्टमी का व्रत किया और अंततः उसके सातों पुत्र फिर से जीवित हो गए।

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व जान लने के बाद आइये अब जानें कि यह व्रत किस प्रकार किया जाता है।

अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें। घर को साफ-सुथरा कर लें। पूजा स्थल पर माता अहोई की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। माता अहोई को लाल रंग का वस्त्र, फल, फूल, मिठाई, रोली, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करें। माता अहोई की कथा सुनें या पढ़ें। व्रत का संकल्प लें। शाम को तारा निकलने के बाद ही व्रत खोलें।

अहोई अष्टमी व्रत की कथा में एक महिला की कहानी है, जिसे स्याहु माता ने शाप दिया था। महिला ने अपनी ननद की जगह अपनी कोख बांध ली थी। स्याहु माता के आशीर्वाद से महिला के सात पुत्र और सात पुत्रवधुओं की प्राप्ति हुई। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि माता अहोई संतान की रक्षा करती हैं और उन्हें सुखमय जीवन प्रदान करती हैं।

अहोई अष्टमी व्रत करने वाली महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहती हैं।
व्रती को अन्न-जल का सेवन नहीं करना चाहिए।
व्रती को दिनभर भगवान का ध्यान करना चाहिए।
व्रती को किसी भी प्रकार के पापकर्मों से बचना चाहिए।

अहोई अष्टमी व्रत करने से संतान की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। व्रती के घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। व्रती की संतान दीर्घ आयु और मंगलमय जीवन जीती है।

जय अहोई माता जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता ।।

ब्रम्हाणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ।।

तू ही है पाताल बसंती तू ही है सुख दाता ।
कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ।।

जिस घर थारो वास वही में गुण आता ।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता ।।

तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पता ।
खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ।।

शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता ।
रतन चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता ।।

श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता ।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता ।।

अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ |


अहोई का अर्थ एक यह भी होता है ‘अनहोनी को होनी बनाना। जिसका उदाहरण साहूकार की बहू ने दिया है। जिस प्रकार अहोई माता ने उस साहूकार की बहू की कोख खोल दी, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी स्त्रियों की मनोकामना अहोई माता पूर्ण करें।

उम्मीद करते है आपको Ahoi Ashtami Vrat Katha पसंद आई होगी। ऐसी ही पौराणिक कथा पढ़ने के लिए Lifewingz.com को फॉलो करें।

Author (लेखक)

  • Mrs. Minakshi Verma

    मैं, मिनाक्षी वर्मा, पेशे से हिंदी ब्लॉगर हूँ और इस क्षेत्र में मुझे काफी अनुभव हो चुका है। मैं  डाइट-फिटनेस, धार्मिक कथा व्रत, त्यौहार, नारी शक्ति आदि पर लिखती हूँ। इसके इलावा फूड, किड्स बुक्स, और महिलाओं के फैशन के बारे में लिखना मेरे पसंदीदा विषय है।

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