Mohini Ekadashi Vrat Katha: वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को मोहनी एकादशी कहते हैं। इस वर्ष यह (Mohini Ekadashi Vrat Date) एकादशी 12 मई 2022 यानि गुरुवार को है। ऐसे में आइए जानते हैं मोहिनी एकादशी की व्रत कथा और व्रत विधि के बारे में।
24 एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी मोहिनी एकादशी इस साल 12 मई को मनाई जाएगी। भगवान विष्णु को समर्पित, यह शुभ दिन वैशाख महीने में पूर्णिमा पखवाड़े यानी शुक्ल पक्ष के 11वें दिन पड़ता है। ‘एकादशी’ नाम का अर्थ 11 है। यह विशेष दिन बड़ी भक्ति के साथ मनाया जाता है क्योंकि मोहनी एकादशी व्रत को अन्य एकादशी के बीच अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है।
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मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha
प्राचीन समय में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक नगरी बसी हुई थी। उस नगरी में द्युतिमान नामक राजा राज्य करता था। उसी नगरी में एक वैश्य रहता था, जो धन-धान्य से पूर्ण था। उसका नाम धनपाल था। वह अत्यन्त धर्मात्मा तथा नारायण-भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, कुएँ, तालाब, धर्मशालाएं आदि बनवाये, सड़को के किनारे आम, जामुन, नीम आदि के वृक्ष लगवाए, जिससे पथिकों को सुख मिले।
उस वैश्य के पाँच पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा पुत्र अत्यन्त पापी व दुष्ट था। वह वेश्याओं और दुष्टों की संगति करता था। इससे जो समय बचता था, उसे वह जुआ खेलने में व्यतीत करता था। वह बड़ा ही अधम था और देवता, पितृ आदि किसी को भी नहीं मानता था। अपने पिता का अधिकांश धन वह बुरे व्यसनों में ही उड़ाया करता था। मद्यपान तथा मांस का भक्षण करना उसका नित्य कर्म था।
जब काफी समझाने-बुझाने पर भी वह सीधे रास्ते पर नहीं आया तो दुखी होकर उसके पिता, भाइयों तथा कुटुम्बियों ने उसे घर से निकाल दिया और उसकी निन्दा करने लगे। घर से निकलने के बाद वह अपने आभूषणों तथा वस्त्रों को बेच-बेचकर अपना गुजारा करने लगा।
धन नष्ट हो जाने पर वेश्याओं तथा उसके दुष्ट साथियों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। जब वह भूख-प्यास से व्यथित हो गया तो उसने चोरी करने का विचार किया और रात्रि में चोरी करके अपना पेट पालने लगा, लेकिन एक दिन वह पकड़ा गया, किन्तु सिपाहियों ने वैश्य का पुत्र जानकर छोड़ दिया। जब वह दूसरी बार पुनः पकड़ा गया, तब सिपाहियों ने भी उसका कोई लिहाज नहीं किया और राजा के सामने प्रस्तुत करके उसे सारी बात बताई। तब राजा ने उसे कारागार में डलवा दिया। कारागार में राजा के आदेश से उसे बहुत कष्ट दिए गये और अन्त में उसे नगर छोड़ने के लिए कहा गया। दुखी होकर उसे नगर छोड़ना पड़ा।
अब वह जंगल में पशु-पक्षियों को मारकर पेट भरने लगा। फिर बहेलिया बन गया और धनुष-बाण से जंगल के निरीह जीवों को मार-मारकर खाने और बेचने लगा। एक बार वह भूख और प्यास से व्याकुल होकर भोजन की खोज में निकला और कौटिन्य मुनि के आश्रम में जा पहुँचा।
इन दिनों वैशाख का महीना था। कौटिन्य मुनि गंगा स्नान करके आये थे। उनके भीगे वस्त्रों की छींटें मात्र से इस पापी को कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई। और वह ऋषि के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लगा- ‘हे महात्मा! मैंने अपने जीवन में अनेक पाप किये हैं, कृपा कर आप उन पापों से छूटने का कोई साधारण और बिना धन का उपाय बतलाइये।’
ऋषि ने कहा- ‘तू ध्यान देकर सुन- वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत कर।’ इस एकादशी का नाम मोहिनी है। इसका उपवास करने से तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। ऋषि के वचनों को सुन वह बहुत प्रसन्न हुआ और उनकी बताई हुई विधि के अनुसार उसने मोहिनी एकादशी का व्रत किया।
इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और अन्त में वह गरुड़ पर सवार हो विष्णुलोक को गया।
मोहिनी एकादशी व्रत विधि –
1. जो व्यक्ति मोहिनी एकादशी का व्रत कर रहा हो, उसे एक दिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। उसे सात्विक भोजन करना चाहिए और रात्रि में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
2. एकादशी व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और नित्य कर्म कर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
3. इस दिन भगवान श्री विष्णु के साथ-साथ भगवान श्री राम की पूजा भी की जाती है। व्रत का संकल्प लेने के बाद ही इस व्रत को शुरु किया जाता है। संकल्प लेने के लिए इन दोनों देवों के समक्ष संकल्प लिया जाता है। देवों का पूजन करने के लिए कलश की स्थापना कर, उसके ऊपर लाल रंग का वस्त्र बांध कर पहले कलश का पूजन किया जाता है।
4. इसके बाद उसके ऊपर भगवान की तस्वीर या प्रतिमा रखें तत्पश्चात भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कर उत्तम वस्त्र पहनाना चाहिए। फिर धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए और मीठे फलों का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद प्रसाद वितरित कर ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा देनी चाहिए। रात्रि में भगवान का कीर्तन करते हुए मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।
5. किसी के प्रति मन में द्वेष की भावना न लाएं और न ही किसी की निंदा करें।
6. व्रत रखने वाले को पूरे दिन निराहार रहना चाहिए। शाम में पूजा के बाद चाहें तो फलाहार कर सकते हैं।
7. एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जागकर भगवान का भजन कीर्तन करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
मोहिनी एकादशी की महानता सबसे पहले भगवान राम को संत वशिष्ठ ने और महाराजा युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने सुनाई थी। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति मोहिनी एकादशी व्रत को पूरी भक्ति के साथ करता है उसका ‘पुण्य’ एक हजार गायों को दान करने जितना मिलता है। इस पूजनीय व्रत को करने वाले को जन्म और मृत्यु के निरंतर चक्र से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोहिनी एकादशी का हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत महत्व है। मोहिनी एकादशी के महत्व के बारे में अधिक जानने के लिए कोई भी ‘सूर्य पुराण’ पढ़ सकता है।
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