Pauranik Katha: शिवरात्रि के शुभ अवसर पर हम आपके लिए शिवजी और माता सती की प्रेम कथा लेकर आए हैं। जानिए, कैसे हुआ था भगवान शिव का विवाह (shiv aur sati ka vivah) माता सती से?
भगवान शिव और माता सती का विवाह (Pauranik Katha)
दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियाँ थीं। सभी पुत्रियां गुणवती थीं। फिर भी दक्ष संतुष्ट नहीं हुए। वे चाहते थे कि उनके घर एक ऐसी पुत्री का जन्म हो जो सर्वशक्तिमान और विजयी हो। जिसके कारण दक्ष ऐसी पुत्री के लिए तपस्या करने लगे।
तपस्या करते हुए अधिक दिन बीत गए तो देवी आद्या प्रकट हुईं और बोलीं, मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। आप किस कारण से तपस्या कर रहे हैं? दक्ष ने तपस्या करने का कारण बताया तो माता ने कहा मैं स्वयं पुत्री रूप में तुम्हारे यहां जन्म लूंगी। मेरा नाम सती होगा।’ मैं सती के रूप में जन्म लेकर अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगी।
फलस्वरूप भगवती आद्या ने सती के रूप में दक्ष के घर में जन्म लिया। दक्ष की सभी पुत्रियों में सती सबसे अलौकिक थीं। सती ने बचपन में ही कई ऐसे अलौकिक चमत्कार किये थे जिन्हें देखकर स्वयं दक्ष भी आश्चर्यचकित रह जाते थे। जब सती विवाह योग्य हो गई तो दक्ष को उनके लिए वर ढूंढने की चिंता सताने लगी। उन्होंने इस विषय पर भगवान ब्रह्मा से परामर्श किया। ब्रह्मा जी ने कहा, सती आद्या का अवतार हैं। आद्या आदि शक्ति और शिव आदि पुरुष।
Read also: Maha Shivratri Story | महाशिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा
अत: सती के विवाह के लिए शिव ही उचित और योग्य वर हैं। दक्ष ने ब्रह्मा जी की बात मानी और सती का विवाह भगवान शिव से कर दिया। सती कैलाश जाकर भगवान शिव के साथ रहने लगीं। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे, लेकिन एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण दक्ष के मन में भगवान शिव के प्रति घृणा और शत्रुता उत्पन्न हो गई।
एक बार देवलोक में ब्रह्मा ने धर्म का निरूपण करने के लिए एक सभा का आयोजन किया था। सभा में सभी बड़े-बड़े देवता एकत्र हुए थे। इस सभा में भगवान शिव भी बैठे थे। सभा मण्डल में दक्ष का आगमन हुआ। दक्ष के आगमन पर सभी देवता खड़े हो गये, परन्तु भगवान शिव खड़े नहीं हुए। उन्होंने दक्ष को प्रणाम भी नहीं किया। परिणामस्वरूप दक्ष को अपमानित महसूस हुआ। इतना ही नहीं, उसके हृदय में भगवान शिव के प्रति ईर्ष्या की आग जल उठी। वे उनसे बदला लेने के लिए समय और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।
एक बार सती और शिव कैलाश पर्वत पर बैठे आपस में बातें कर रहे थे। उसी समय आकाश से अनेक विमान कनखल की ओर जाते दिखाई दिये। सती ने उन विमानों को देखकर भगवान शिव से पूछा, हे प्रभु, ये किसके विमान हैं और कहाँ जा रहे हैं? भगवान शंकर ने उत्तर दिया कि तुम्हारे पिता ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया है। सभी देवी-देवता इन विमानों में बैठकर उसी यज्ञ में भाग लेने जा रहे हैं।
इस पर सती ने दूसरा प्रश्न किया क्या मेरे पिता ने आपको यज्ञ में सम्मिलित होने के लिये नहीं बुलाया था? भगवान शंकर ने उत्तर दिया, तुम्हारे पिता मुझसे घृणा करते हैं, फिर वे मुझे क्यों बुलाने लगे?
सती मन ही मन सोचने लगीं फिर बोलीं यज्ञ के इस अवसर पर अवश्य मेरी सभी बहनें आएंगी। उनसे मिले हुए बहुत दिन हो गए। यदि आपकी अनुमति हो, तो मैं भी अपने पिता के घर जाना चाहती हूं। यज्ञ में सम्मिलित हो लूंगी और बहनों से भी मिलने का सुअवसर मिलेगा।
सती मन में सोचने लगीं और फिर बोलीं कि इस यज्ञ के अवसर पर मेरी सभी बहनें अवश्य आयेंगी। उनसे मिले हुए काफी समय हो गया है। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं भी अपने पिता के घर जाना चाहती हूँ। मैं यज्ञ में शामिल भी हो जाऊंगी और अपनी बहनों से भी मिलूंगी।
भगवान शिव ने कहा, इस समय पिताजी के घर जाना सही नहीं है। आपके पिताजी आपसे नाराज हो सकते हैं और आपका अपमान कर सकते हैं। किसी के घर बिना बुलाए जाना उचित नहीं होता। इस पर सती ने पूछा कि ऐसा क्यों है? भगवान शिव ने जवाब दिया कि विवाहित लड़की को बिना बुलाए पिताजी के घर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि विवाह हो जाने पर लड़की पतिव्रता हो जाती है। पिताजी के घर से उसका संबंध टूट जाता है।लेकिन सती पीहर जाने के लिए अड़ी रहीं। अपनी बात बार-बार दोहराती रही। उनकी इच्छा देखकर भगवान शिव ने पीहर जाने की अनुमति दे दी। उन्होंने साथ में एक गण, वीरभद्र, को भेजा। सती वीरभद्र के साथ पिताजी के घर पहुंची।
घर में किसी ने भी सती से प्रेमपूर्वक बात नहीं की। दक्ष ने उनकी ओर देखा और पूछा, “क्या तुम यहाँ मेरा अपमान करने आई हो?” अपनी बहनों को देखो, वे किस प्रकार नाना प्रकार के आभूषणों और सुन्दर वस्त्रों से सजी हुई हैं।
“तुम्हारे शरीर पर सिर्फ बाघंबर हैं। तुम्हारे पति श्मशानवासी और भूतों का नेता हैं। उसने तुम्हें बाघंबर सिवाए कुछ नहीं पहनने दिया। दक्ष के शब्दों से सती के दिल में अब अफसोस का समुंदर भर गया। उसे लगने लगा कि उसने यहां आने में गलती की। भगवान सही कह रहे थे, बिना बुलाए पिता के घर नहीं जाना चाहिए था। लेकिन अब क्या हो सकता है? अब मैं आ गई हूं।”
पिता के कटु एवं अपमानजनक वचन सुनकर भी सती चुप रहीं। वह यज्ञ-अग्नि में गयी जहाँ सभी देवता और ऋषि बैठे थे और यज्ञ-अग्नि में सुलगती अग्नि में आहुतियाँ दी जा रही थीं। सती ने यज्ञमंडप में सभी देवताओं के तो भाग देखे, परंतु भगवान शिव का भाग नहीं देखा। भगवान शिव का भाग न देखकर उसने अपने पिता से कहा कि पितृश्रेष्ठ यज्ञ में सबका भाग तो दिखता है परन्तु कैलाशपति का भाग नहीं दिखता। आपने उनका भाग क्यों नहीं रखा?
दक्ष ने अभिमान से उत्तर दिया मैं तुम्हारे पति शिव को भगवान नहीं मानता। वह भूतों का स्वामी, नग्न रहने वाला और हड्डियों की माला पहनने वाला है। वह देवताओं की श्रेणी में बैठने के योग्य नहीं है। कौन उसे कौन भाग देगा ?
सती के नेत्र लाल हो उठे। उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। उसका चेहरा प्रलय के सूरज की तरह चमक रहा था। वह दर्द से काँपते हुए बोली, अरे मैं ये शब्द कैसे सुन रही हूँ, लानत है मुझ पर। देवताओं, शर्म करो, तुम कैलाशपति के बारे में ऐसी बातें कैसे सुन रहे हो जो मंगल के प्रतीक हैं और जो एक पल में पूरी सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं।
वे मेरे स्वामी हैं। एक महिला के लिए उसका पति ही स्वर्ग होता है। जो स्त्री अपने पति के बारे में अपमानजनक शब्द सुनती है उसे नर्क में जाना पड़ता है। सुनो पृथ्वी, सुनो आकाश और देवताओं, तुम भी सुनो, मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया है। मैं अब एक क्षण भी जीना नहीं चाहती। सती ने अपना कथन समाप्त किया और यज्ञ कुंड में कूद पड़ीं। जलती आहुतियों के साथ उसका शरीर भी जलने लगा। यज्ञमंडप में हलचल मच गई, हाहाकार मच गया। देवता खड़े हो गये।
वीरभद्र क्रोध से कांप उठे। वे उछल-कूद कर यज्ञ को नष्ट करने लगे। यज्ञमंडप में भगदड़ मच गई। देवता और ऋषि-मुनि भाग गये। वीरभद्र ने तुरंत दक्ष का सिर काटकर दूर फेंक दिया। यह समाचार भगवान शिव के कानों में भी पड़ा।
वे भयंकर तूफ़ान की भाँति कनखल पहुँच गये। सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव स्वयं को भूल गए। सती के प्रेम और भक्ति ने शंकर के मन को व्याकुल कर दिया। जिस शंकर ने काम पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और जो संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की क्षमता रखते थे, उनका मन व्याकुल हो गया। वह सती के प्रेम में खोकर अचेत हो गये।
भगवान शिव ने पागलों की तरह सती के जले हुए शरीर को अपने कंधे पर रख लिया। वे सभी दिशाओं में यात्रा करने लगे। शिव और सती के इस अलौकिक प्रेम को देखकर पृथ्वी रुक गई, हवा रुक गई, जल का प्रवाह रुक गया और देवताओं की सांसें रुक गईं। सृष्टि व्याकुल हो गई, सृष्टि के प्राणी चिल्लाने लगे- पाहिमाम्, पाहिमाम्। भयंकर संकट उपस्थित देखकर सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु आगे बढ़े।
भगवान शिव की मूर्छा को तोड़ने के लिए, उन्होंने अपने चक्र से सती के हर अंग को काटकर गिराना शुरू कर दिया। धरती पर इक्यावन स्थानों में सती के शरीर के विभिन्न अंग कटकर गिर गए। जब सती के सभी अंग काटे गए, तो भगवान शिव फिर से अपनी पूर्णता में पहुंच गए। जब वे अपने आप में आ गए, तो सृष्टि के सभी कार्य फिर से चलने लगे।
जहां-जहां सती के अंग गिरे थे, वहां आज भी उन्हें शक्ति के पीठ स्थान के रूप में माना जाता है। वहां आज भी सती की पूजा-अर्चना की जाती है।