Maha Shivratri Vrat Katha: महाशिवरात्रि एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे प्रति वर्ष मनाया जाता है। इस साल महाशिवरात्रि 8 मार्च 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन लोग उपवास करते हैं और शिव परिवार की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान व्रत कथा पढ़ी या सुनी जाती है जिसे फलदायी माना जाता है। आज के लेख में हम आपके लिए शिवरात्रि व्रत कथा (Shivratri Vrat Katha) लेकर आए हैं। इसे पढ़कर आप भी भगवान शिव की कृपा पा सकते हैं।
शिवरात्रि व्रत कथा (Shivratri Vrat Katha)
प्राचीन काल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। वह जानवरों को मारकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन समय पर उसका कर्ज नहीं चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में कैद कर दिया। संयोगवश उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी के दिन उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
जब शाम हुई, साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और कर्ज चुकाने के बारे में बात की। अगले दिन शिकारी ने सारा कर्ज वापस करने का वचन देकर बंधन से मुक्त हो गया। उसने अपनी दिनचर्या के अनुसार जंगल में शिकार करने के लिए निकला। परंतु दिन भर बंदीगृह में रहने के कारण उसे भूख और प्यास की पीड़ा होने लगी। वह शिकार की तलाश में बहुत दूर चला गया। जब अंधेरा हो गया, तो उसने सोचा कि रात जंगल में बितानी पड़ेगी। वह तालाब के किनारे लगे बिल्वपत्र के पेड़ पर चढ़ गया और सुबह होने का इंतजार करने लगा।
बिल्व वृक्ष के नीचे बिल्व पत्रों से ढका हुआ एक शिवलिंग था। शिविर लगाते समय शिकारी ने अनजाने में बिल्व वृक्ष शाखाएँ तोड़ दीं जो शिवलिंग पर गिरीं। इस तरह दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीतने के बाद एक गर्भवती हिरणी तालाब की ओर पानी पीने पहुँची।
Mahashivratri Upay: महाशिवरात्रि पर अवश्य करें ये ज्योतिषीय उपाय, ये उपाय चमका सकते हैं आपकी किस्मत
शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर जैसे ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली- ‘मैं गर्भवती हूं। मैं जल्द ही प्रसव करूंगी। आप एक साथ दो प्राणियों की हत्या कर रहे हो, जो सही नहीं है। मैं शीघ्र ही बच्चे को जन्म देकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊंगी, तब तुम मुझे मार डालना।’
शिकारी ने डोर ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में गायब हो गई। डोरे को फहराते और ढीला करते समय कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूटकर शिवलिंग पर गिर गये। इस प्रकार प्रथम प्रहर की पूजा भी अनजाने में ही सम्पन्न हो गयी।
कुछ ही समय बाद एक और हिरणी वहाँ से निकली। शिकारी बहुत खुश था। जब हिरणी पास आई, शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाया। उसको देखकर हिरणी ने विनम्रता से निवेदन किया-
“हे शिकारी! मैंने हाल ही में ऋतु से निवृत्ति प्राप्त की है। कामुक विरहिणी हूँ। मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ शिकारी ने उसे भी बचने दिया।”
उसने अपना शिकार दो बार गंवा दिया और इससे उसका मन उदास हो गया। वह परेशानी में था। रात का अंतिम समय बीत रहा था। इस बार भी उसने धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे और दूसरा प्रहर की पूजा भी संपन्न हो गई।
तभी एक और हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से गुजरी। शिकारी के लिए यह सुनहरा अवसर था। उन्होंने धनुष पर बाण चढ़ाने में जरा भी देर नहीं की। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- ‘हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंपकर लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।’
शिकारी हंसा और बोला, ‘मैं इतना मूर्ख नहीं हूं कि सामने आए शिकार को छोड़ दूं। मैं पहले भी दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से पीड़ित होंगे।’
जवाब में हिरणी ने फिर कहा- जैसे तुम्हें अपने बच्चों का प्यार सता रहा है, उसी तरह मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करो, मैं उन्हें उनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने का वादा करती हूँ।
जब शिकारी ने हिरणी का दुखभरा स्वर सुना, उसे उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में और भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंक रहा था। कुछ समय बाद एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी दिशा में आ गया। शिकारी ने सोचा कि इसे वह अवश्य पकड़ेगा।
शिकारी के तनावपूर्ण रुख को देखकर हिरण ने विनम्र स्वर में कहा- ‘हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी कष्ट न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूँ। यदि तुमने उसे जीवनदान दिया है तो कृपया मुझे भी कुछ क्षण का जीवन दो। मैं उनसे मिलूंगा और आपके सामने पेश होऊंगा।’
हिरण की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात की घटनाएँ घूम गईं। उसने सारी कहानी हिरण को बता दी। तब हिरण ने कहा- ‘जैसे मेरी तीनों पत्नियां वचन देकर चली गई हैं, वैसे ही मेरी मृत्यु से वे अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अत: जैसे तुमने उन्हें अपना विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, उसी प्रकार मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ शीघ्र ही आपके समक्ष उपस्थित होऊंगा।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार सुबह हुई। व्रत, रात्रि जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से अनजाने में ही शिवरात्रि की पूजा पूरी हो गई। लेकिन अनजाने में की गई पूजा का फल उसे तुरंत मिल गया। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें ईश्वर की भक्ति का वास हो गया।
कुछ देर बाद हिरण अपने परिवार सहित शिकारी के सामने उपस्थित हुआ, ताकि वह उनका शिकार कर सके, लेकिन जंगली जानवरों की ऐसी सच्चाई, ईमानदारी और सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बहुत ग्लानि हुई। उसने हिरण परिवार को जीवनदान दिया।
अनजाने में भी शिवरात्रि का व्रत करने से शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। मृत्यु के समय जब यमदूत उसके प्राण लेने आये तो भगवान शिव ने उन्हें वापस भेज दिया और शिकारी को शिवलोक ले गये। भगवान शिव की कृपा से ही राजा चित्रभानु को अपने पिछले जन्म की याद आ सकी और वे महाशिवरात्रि के महत्व को जानकर अगले जन्म में भी इसका पालन कर सके।
यह कहानी (Shivratri Vrat Katha) हमें प्रेरणा देती है कि हमें भी भगवान शिव की भक्ति करनी चाहिए, दयालुता का जीवन जीना चाहिए और दूसरों के प्रति करुणा और सहानुभूति दिखानी चाहिए। हमे उम्मीद है कि आपको यह कथा पसंद आयी होगी। ऐसी ही पौराणिक और धार्मिक कथा पढ़ने के लिए Lifewingz को फॉलो जरूर करें।