Swami Vivekananda Biography in Hindi: आज के इस लेख में स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण जीवनी (Biography of Swami Vivekananda) के बारे में बताने वाले है।
“संभव की सीमा जानने का केवल एक ही
तरीका है असंभव से भी आगे निकल जाना।“
भारत वर्ष में अनेक महापुरुष जन्मे है। जिन्होंने अपने कार्यो और विचारो से भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई। इनमें से एक थे स्वामी विवेकनन्द। स्वामीजी का नाम सुनते ही या उनका चित्र देखते ही युवाओं में जैसे एक उत्साह की तरंग आ जाती है।
मात्र 25 वर्ष की आयु में संन्यास ग्रहण करने वाले स्वामी जी ने अपने जीवन में असाधारण कार्य किया। 39 वर्ष की आयु में उन्होंने इस कदर काम किया कि स्वामीजी की ख्याति विश्वपटल पर छा गई। उन्हें हिन्दू पुनर्जागरण का महानायक कहा जाता है।
युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंदजी का जन्म कलकत्ता में 12 जनवरी 1863 को माता भुवनेश्वरी देवी और पिता विश्वनाथ दत्त के यहाँ हुआ था। इनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनकी माता अध्यात्म पर अधिक विश्वास करती थी। इस कारण बाल्यकाल में ही स्वामी जी पर आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने की इच्छा जाग्रत हुई और ईश्वर को प्राप्त करने की महत्त्वकांक्षा पैदा हुई।
बाल्यकाल में ही स्वामी जी बेहद होशियार और निडर थे। उनके बचपन की एक घटना है। एक बार वे अपने दोस्तों के साथ एक पेड़ पर उल्टा लटक रहे थे। तब एक व्यक्ति ने कहा कि इस पेड़ पर दुबारा मत लटकना। इस पेड़ पर भयानक डायन रहती है। वह तुम सब को खा जाएगी। इतना सुनकर बाकि बच्चे तो वहाँ से भाग खड़े हुए। लेकिन नरेन्द्र वही लटके रहे और बोले देखो मैं पेड़ पर लटका हुआ हूँ। मुझे तो डायन नहीं खा सकती। यह कहानी उनके निर्भीकता को दर्शाती है।
स्वामी जी के जीवन की एक रोचक घटना है। एक बार वे फलों से भरी टोकरी लेकर मंदिर जा रहे थे। तब रास्ते में कुछ बंदरो ने उनका पीछा किया। स्वामीजी फलों को बचाने के लिए तेज-तेज चलने लगे। तो बंदर भी तेज-तेज चलने लगे। स्वामी ने दौड़ना शुरू किया तो बंदर भी उनके पीछे दौड़ने लगे। तभी स्वामीजी को पीछे से किसी ने आवाज दी कि भागो मत सामना करो। तब स्वामीजी में थोड़ी हिम्मत आई और उन्होंने बंदर का सामना किया। सभी बंदर वहाँ से भाग गए।
स्वामीजी की शिक्षा विवेकानंद
सन 1871 में ICVMI (ईश्वरचंद विद्यासागर मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट) में पढाई शुरू की। सन 1879 में वे पुनः कलकत्ता लौटे। यहाँ रहते हुए उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता की एंट्रेस एग्जाम फर्स्ट डिविजन से पास की। स्वामी जी ने 1884 में अपनी ग्रेजुएशन बीए पूर्ण की।
स्वामी जी को पढाई के अलावा खेल कूद में भी रूचि थी। उन्हें योग करना, फुटबॉल खेलना और संगीत सुनना अच्छा लगता था।
सन 1884 में पिता विश्वनाथ के देहांत के बाद उनके परिवार पर मानो पहाड़ टूट पड़ा। पूरे परिवार की जिम्मेदारी नरेंद्र पर आ गई। इस दौरान स्वामी जी ने घोर गरीबी का सामना किया। नौकरी के लिए भी उन्हें दर-दर भटकना पड़ रहा था।
स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक गुरु का नाम रामकृष्ण देव परमहंस था। रामकृष्ण देव परमहंस दक्षिणेश्वर के पुजारी थे। स्वामी जी के जीवन में मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात गुरु रामकृष्ण परमहंस से हुई। उनकी पहली मुलाकात जब स्वामी जी 18 वर्ष के थे तब हुई थी। गुरु रामकृष्ण परमहंस जी ने स्वामी जी को देखते ही उन्हें पहचान लिया था। यह बालक कोई सामन्य बालक नहीं है। अत: उन्होंने स्वामी जी को अपने साथ दक्षिणेश्वर चलने को कहा।
स्वामी जी ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु बना लिया और उनके साथ दक्षिणेश्वर चले गए। मात्र 25 वर्ष की आयु में स्वामी जी ने घर बार, दुनियादारी छोड़ कर मानव कल्याण का लक्ष्य रख सन्यासी बन गए। वहाँ रहते हुए वे नित्य सुबह जल्दी उठते योग और ध्यान करते और गुरु जी की सेवा करने लगे। स्वामी जी अपने गुरु के प्रति अत्यंत श्रद्धा भाव रखते थे। स्वामी जी उन शिष्यों को सबक सिखाते थे जो गुरु की सेवा में कामचोरी करते। गुरु रामकृष्ण भी उन्हें एक प्रतिभाशाली शिष्य मानते थे। उन्होंने स्वामी जी से कहा था कि मेरी मृत्यु के बाद सभी शिष्यों को ज्ञान देना तुम्हारा काम है। 15 अगस्त 1886 को गुरु रामकृष्ण संसार को छोड़ कर चले गए।
स्वामी जी ने मनुष्य के दुखों को जानने के लिए पूरे भारत की पैदल, यात्रा शुरू की। कुछ साल बाद उन्होंने 1889 में रामकृष्ण परमहंस मिशन की शुरुआत की। अपने गुरु के विचारों को भारत ही नहीं पूरे विश्व में फैलाना उनका उद्देश्य था।
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स्वामीजी की यात्राएँ
इस दौरान उन्होंने विदेशी यात्राएँ शुरू की। उन्होंने अमेरिका में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने का सोचा। अमेरिका जाने से पहले स्वामी जी खेतड़ी, झुंझनु आए थे। खेतड़ी के राजा ने स्वामी जी को सर्वप्रथम विवेकानंद कहकर पुकारा। विवेकानंदका मतलब धैर्य की अनुभूति होना।
स्वामी जी ने 1893, शिकागो विश्व धर्म सम्मलेन में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने अपने पांच मिनट के भाषण से भारत को विश्वपटल पर एक अलग पहचान दिलाई थी। इस भाषण के बाद विदेशी उन्हें तूफानी हिन्दू कहने लगे। स्वामी जी के इस भाषण को इतिहास के प्रसिद्ध भाषणों में गिना जाता है।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु
विदेश में हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार करने के बाद स्वामी जी पुनः भारत लौटे। यहाँ उनकी तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी। उन्होंने अपने शिष्यों को भागीरथी नदी के किनारे मठ (आश्रम) बनाने की इच्छा प्रकट की। ठीक एक साल बाद मठ तैयार हो गया। इसे वेलूर मठ कहा जाता है।
वैलूर मठ (आश्रम) में 4 जुलाई 1902 को स्वामीजी का निधन हो गया। उस समय उनकी आयु मात्र 39 वर्ष थी। यह उनकी अंतिम समाधि थी। मृत्यु वाले दिन भी स्वामी जी की दैनिक क्रिया वही थी जो क्रिया रोज करते थे। उस दिन स्वामीजी ने व्रत रखा था और अपने हाथों से सभी शिष्यों को भोजन परोसा था। इसके बाद वे ध्यान साधना में लीन हो गए। उसी दौरान उनकी आत्मा नश्वर शरीर को छोड़ कर चली गई।
स्वामी विवेकानंद आज हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनके विचार और उनकी पहचान आज भी लोगों के दिलो में मौजूद है। स्वामी जी के अनमोल विचार आज की युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते है।
– “उठो! जागो! और तब तक मत ठहरो जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो”
– “स्वयं पर विश्वास रखो और सही दिशा में कार्य करो, ये दुनिया आपके कदमों में होगी”
– “परिंदे को पेड़ की डाली टूटने का डर नहीं रहता क्योंकि उसे अपने पंखों पर भरोसा है”
– “ध्यान रहे कि दुनिया का बड़े से बड़ा काम छोटे लोगों द्वारा ही पूर्ण होता है। इसलिए अपने उद्देश्य में जी जान से जुट जाओ”
– “एक उत्कृष्ट चरित्रवान व्यक्ति हर जगह पूजा जाता है”
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स्वामी विवेकानंदके शिक्षा पर विचार
स्वामीजी ने ऐसी शिक्षा का खुलकर विरोध किया है। जो केवल विद्यार्थी के मार्क्स से तय हो। स्वामी जी के अनुसार ऐसी शिक्षा से केवल बाबू ही बन सकते है। स्वामीजी ऐसी शिक्षा पद्धति पर जोर देते थे जो एक विद्यार्थी को आत्मनिर्भर बनाए, अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाए और जो समाज के काम आ सके। ऐसी शिक्षा जो विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करे। उसके चरित्र को उपर उठाए। स्वामीजी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास तीनों पर जोर देते थे।
स्वामीजी की प्रमुख पुस्तके
स्वामी विवेकानंदजी के हाथों द्वारा लिखी गई पुस्तकों के नाम निम्न लिखित है। राजयोग, कर्मयोग और आधुनिक वेदांत आदि पुस्तकें स्वामीजी ने लिखी है।
हमें उम्मीद हैं कि स्वामी विवेकानंद की बायोग्राफी से आपको महत्त्वपूर्ण और प्रेरणा से भरी जानकारी मिली होगी।
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pasandhai.in
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