Nirbhaya case के ऊपर कवि ने अपने कुछ शब्दों में समाज को आईना दिखाया हैं। अभी भी nirbhaya kand जैसे घिनोने अपराध ( rape case ) होते हैं।
कैसा ये मंजर है आया
निर्भया की मां के दिल,
को तार तार ऐसा किया,
कि मानो कभी इसमें धड़कन ना धड़की हो।
जिस कानून के भरोसे थी बैठी,
न्याय की गुहार लगाए,
उसी ने निर्भया की रूबरू को,
फिर से है नोचा।
शर्म कहां गई,
इस अंधे और बहरे कानून की,
देखो कैसे अनदेखा कर रही ,
उस मां की चीखों को।
गूँज रही जो,
हर मोहल्ले कोनों में,
कैसा ये इंसाफ है।
जहां दरिंदो के वकील गर्व कर रहे,
वहीं उस मां की गुज़ारिश को सब अनदेखा कर रहे।
कहां गई हमारे अंदर की शर्म,
जो हम सब ये तमाशा देख रहे।
उस बाप का था क्या कसूर,
जो बेटी के कन्यादान की जगह,
कंधा जब दिया होगा तब दिल कितना टूटा होगा।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा,
खाली दीवारों के लिए नहीं है।
उसको एक बार अपना के तो देखो,
बेटी पढ़ेगी तो बढ़ेगी, और लड़ेंगी भी,
बेटी दुनिया में नाम रोशन करेंगी भी।।
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हम भारतवासी कभी-कभी तो खुद को अत्यंत राष्ट्रवादी, सांस्कृतिकवादी, सुशील, कोमल, ज्ञानी, विश्वगुरु और स्वयं को गौरवान्वित महसूस करने लगते हैं। लेकिन हमारी नस नस में आडंबर और दिखावा समा चुका है।
हम प्रतिदिन स्त्रीरूपी देविओं के सामने नतमस्तक होते हैं। उनकी पूजा करते हैं , उनके पैर छूते हैं , जिन बालिकाओं को हम कंजक के रूप में बिठाकर पूजते हैं यहां तक कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसा अभियान चलाते हैं, दहेज प्रथा और कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध हम कानून तो बनाते हैं, लेकिन ऐसे कानून का सही ढंग से पालन नहीं हो रहा।
सबसे बड़ा कलंक तो बलात्कार जैसा समाज पर है। निर्भया केस जैसे कई और केस हैं जो सिर्फ पेपरों तक ही सीमित रह गए हैं। आखिर कब तक हमारी लड़कियाँ ऐसे डर के माहौल में घुट घुट कर जियेंगी ?
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by Shubhi Gupta ( शुभी गुप्ता )
Story and Poem Writer
निर्भया केस की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
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